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Showing posts from February, 2022

পাশুপাত অস্ত্ৰ:

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चारों दिशा से विजय दिलाता है पाशुपतास्त्र स्तोत्र,  इस पाशुपतास्त्र स्तोत्र का मात्र 1 बार जप करने पर ही मनुष्य समस्त विघ्नों का नाश कर सकता है। 100 बार जप करने पर समस्त उत्पातों को नष्ट कर सकता है तथा युद्ध आदि में विजय प्राप्त कर सकता है। इस मंत्र का घी और गुग्गल से हवन करने से मनुष्य असाध्य कार्यों को पूर्ण कर सकता है।  इस पाशुपतास्त्र मंत्र के पाठ मात्र से समस्त क्लेशों की शांति हो जाती है। चारों दिशा से विजय दिलाता है यह चमत्कारी स्तोत्र.. स्तोत्रम्   "ॐ नमो भगवते महापाशुपतायातुलबलवीर्यपराक्रमाय त्रिपन्चनयनाय नानारुपाय नानाप्रहरणोद्यताय सर्वांगडरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशान वेतालप्रियाय सर्वविघ्ननिकृन्तन रताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकम्पिने असंख्यवक्त्रभुजपादाय तस्मिन् सिद्धाय वेतालवित्रासिने शाकिनीक्षोभ जनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभन्जनाय सूर्यसोमाग्नित्राय विष्णु कवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदण्डवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलज्जिह्राय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षय कारिणे। ॐ कृष्णपिंग्डलाय फट। हूंकारास्त्राय फट। वज्र हस्ताय फट। शक्तये फट। दण्डाय फट। यमाय फ...

Rakshya mantra

रक्षा मन्त्र "ॐ सत नमो आदेश। गुरुजी को आदेश। ॐ गुरुजी। अलख अलख जी हंस बैठा, प्राण पिण्ड वज्र का कोठा। वज्र का पिण्ड, वज्र का हंस, वज्र भयो दशो दरवेस। गुरु मन्त्र से मन बान्धो, तन्त्र शक्ति से तन।  चार खानी की जड़ बान्धो चार बानी को बन्ध, कमलारानी कमल रखे,जोत जगाय जोगन। चन्दसूर दो तन प्रकाश, बुद्ध राखे गणेश।  चार जुग जोत जगाय गोरख किये अलख। अर्बद-नर्बद आकाश बान्धो, सात समन्दर पाताल बान्धों, बान्धो नव खूट की धरती। हात अस्त्र फास लिया,  तिर तिरकस बान लिया। दसम दिशा कु राखी।  हस्तक ले मस्तक ले कर मे अंकुश काल।  दिन राती अखण्ड बाती करी रक्षा दसो कोतवाल। वज्र का द्वार, वज्र कवाड, वज्र बान्धो मकान। पल पल पल्लु राखी वज्र बाला, ना राखी तो माता गौरया की आन। काशी कोतवाल भैरुनाथ भरे धर्म की साख, टैल टैलुवा, तेल तैलुवा ज्योत जगी अन्त प्रकाश। सौ योजन आगे पाछे, सौ योजन उपर निचे, सौ योजन दाये बाये, सौ सौ योजन ज्योत प्रकाश। उठो हनुमान करो हुंकार राम नाम का झन्कार, आते की सिमा बान्ध जाते की सिमा बान्ध ना बान्धे तो प्रभु रामचन्द्र की आन। राम का बान चले, चले लक्ष्मण तीर, चौसट जोगन ...

বৰাহ কবচ (BARAH KAVACH IN HINDI)

श्री वराह कवचम "अध्यं रन्गमिथि प्रोक्थं विमानं रङ्ग संग्निथं, श्री मुष्णं, वेन्कतद्रि च सलग्रमं च नैमिसं, थोथद्रीं पुष्करं चैव नर नारायनस्रमं, आश्तौ मय मुर्थय संथि स्वयम् व्यक्था महि थाले। श्री रुद्र निर्नीथ मुररि गुण सतः सागर, संथुष्ट परवथि प्राह संकरं, लोक संकरं। श्री मुष्णेसस्य महाथ्म्यं, वराहस्य महत्ह्मन, श्रुथ्व थ्रुप्थिर न मय जथ मन कौथुहलयथे, स्रोथुं थाधेव महाथ्म्यं, थास्माद वर्णया मय पुन, शृणु देवी प्रवक्ष्यामि, श्री मुष्णस्य वैभवं, यस्य श्रवण मथ्रेण महा पापै प्रमुच्यथे, सर्वेषां एव थीर्थानां थीर्थ रजो अभिधीयथे, नित्य पुष्करिणी नाम्नि श्री मुष्णो य च वर्थाथे, जथ स्रमपाह पुण्य वराहस्रम वारिणा। विष्णोर अन्गुष्ट सं स्पर्सणतः पुण्यधा खलु जःणवी, विष्णो सर्वाङ्ग संभूथ, नित्य पुष्करिणी शुभ। महा नाधि सहस्रेण निथ्यध संगध शुभ, सकृतः स्नथ्व विमुक्थाघ, साध्यो यदि हरे पदं। थस्य अज्ञेय भागे थु अस्वथ् चय योधके, स्नानं क्रुथ्व पिप्पलस्य क्रुथ्व च अभि प्रदक्षिणं। ड्रुश्त्व श्वेथ वराहं च मासमेकं नयेध्यधि, कला मृत्यु विनिर्जिथ्य, श्रिया परमया सुथा। अधि व्याधि विनिर्मुक्थो ग्रहं पीडा विवर्जिथ,...

শত্ৰু ৰক্ষা মন্ত্ৰঃ

শ্ৰী কৃষ্ণ কীলক "ॐ গোপিকা-বৃন্দ-মধ্যস্হং,ৰাস-ক্ৰীড়া-স-মণ্ডলম্। ক্লম প্ৰচতি কেশালিঙ,ভজেতম্বুজ-ৰুচি হৰিম্।। বিদ্যাবয় মহা-শত্ৰুণ,জল-স্হল-গতান প্ৰভু! মমাভীষ্ট বৰং দেহী,শ্ৰীমত কমললোচন!।।  ভবাম্বুধে পাহি পাহি,প্ৰাণ-নাথ কৃপা কৰ!  হৰ ত্বং-সৰ্ব্ব পাপানি,বাঞ্ছা-তল্প-কৰো মৰ্ম্ম !  জলে ৰক্ষ,স্থলে ৰক্ষ,ৰক্ষ মাং ভব সাগৰত্। কৃষ্মাণ্ডান,ভূত গণাণ,চূৰ্ণয় ত্বং মহা ভয়ম।।  শংখ চনেন শত্ৰুনাঙ,হৃদয়ানি বিকম্পয়।  দেহি দেহি মহা ভূতি,সৰ্ব সম্পদ কৰং পৰম্।।  বংশী শোভন মায়েশ,গোপি চিত্ত প্ৰসাদক!  জ্বৰং দাহং,মনো দাহং,বন্ধ বন্ধনজং ভয়ম্।। নিস্পিদয় সদা,গদাধৰ গদাত  গ্ৰজঃ!  ইতি শ্ৰী গোপীকা কান্তং,কিলকং পৰি কীৰ্তীতম। য়হ পথেত নিশি বা পঞ্চ মনোত ভীলষিতঙ ভবেত্। সকৃত ৱা পঞ্চ বাৰং ৱা য়হ পথেত তু-চতুস্পথে।। চত্ৰবঃ তস্য বিঞ্চিনাহ স্হান ভ্ৰষ্টা পলায়িনঃ।  দৰিদ্ৰা ভিক্ষু ৰূপেন,ক্লিচয়ন্তে নাত্ৰঃ সংশয় হ।।  ॐ ক্লীঙ কৃষ্ণায় গোবিন্দায় গোপিজন বল্লভায় স্বাহা।।"

গাৰ বান্ধ মেলা মন্ত্ৰ:

গাৰ বান্ধ মেলা মন্ত্ৰ: "শ্ৰী শ্ৰী গুৰুদেৱায় নমঃ।হাত মেলো,বাত মেলো তিনি তাল বহি মেলো,বন্ধু বান্ধৱ পাতাল,ত্ৰিদশ কোটি দেৱতাক, যেহি আছা ছাই,আমুকাৰ ঘৰ-দুৱাৰ মুকলি হৈ যা, মোত পৰে নাই কেউ,নিৰাঙ্ক সকাম কুন্দল,আমুকীৰ ধৰণি মেলো দশ দুৱাৰ ।মোৰ হাক গুৰুৰ ডাক,ধৰণি মেলো পানী হৈ থাক।।*।।"